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कविता: कुल कुटुम्ब सब खो गए (सुरेन सागर, सांगानेर, भीलवाड़ा, राजस्थान)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सुरेन सागर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “कुल कुटुम्ब सब खो गए”:

कुल कुटुम्ब सब खो गए
घर बेमानी हो गए
 
गुल से गुलशन थे सुंदर
गुल ही छूमन्तर हो गए।
 
कुल कुटुम्ब सब खो ....
 
तन्हाई होती क्या जाने
सब दिन संग रहते थे सारे
 
कुल को छोड़ देखो सब  तन्हा से हो गए
 
कुल कुटुम्ब सब .......
 
दादा दादी ताई ताया
छुटे सब अब कोई न भाया
 
पापा मम्मी संग अब केवल भैया रह गए
 
कुल कुटुम्ब.......
 
त्याग समर्पण सेवा संयम
कुटुम्ब के थे नियम
 
एकाकी जीवन मे सब नदारद हो गए।
 
कुल कुटुम्ब ......
 
दादी माँ की नेक कहानी
रोज सुनाती अपनी जुबानी
 
गई कहानी हुई पुरानी सब कहानी हो गए
 
मेले में संग संग जाने का
आनन्द बड़ा था झूला खाने का
 
झूले चकरी डोलर मेले न जाने कहा खो गए।
 
कुल कुटुम्ब .........
 
प्रकृति की गोद मे जीवन सहसा
निर्मलता को पाता था
घर में अपने देख कुटुम्ब को बड़ा में इतराता था
 
छूटी डोर उड़ गए पतंग सब इतराना भी भूल गए।
 
कुल कुटुम्ब ..
…......