पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सलिल सरोज की एक कविता जिसका शीर्षक है “हम ख्वाब बनाते हैं”:
हम खुशियों का
गाँव बनाते हैं
हम बच्चों के लिए नाव बनाते हैं
हम पेड़ हो गए भले बूढ़े ही सही
पर आज भी घनी छाँव बनाते हैं
हम उस्तादों को भी अपना हुनर पता है
हम जूते नहीं,भविष्य का पाँव बनाते हैं
रात को पढ़ सको तुम दिन की तरह
हम जुगनुओं की किताब बनाते हैं
दुनिया रह सके इंसानियत से रौशन
हम बच्चियों को माहताब बनाते हैं
हक़ीक़त से भी हसीन एक जहान हो
उसी वास्ते हम रूमानी ख्वाब बनाते हैं
हम बच्चों के लिए नाव बनाते हैं
पर आज भी घनी छाँव बनाते हैं
हम जूते नहीं,भविष्य का पाँव बनाते हैं
हम जुगनुओं की किताब बनाते हैं
हम बच्चियों को माहताब बनाते हैं
उसी वास्ते हम रूमानी ख्वाब बनाते हैं