पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार निशा ठाकुर की एक कविता जिसका शीर्षक है “मेरी आत्मकथा":
जो दिखते नहीं वो दर्द बहुत है
जिंदगी के राहो में फर्ज बहुत है
उड़ान भरू या पंख कुतर दू अपनी
ऐ दिल तेरे सहारे के भी कर्ज बहुत है।
मगरुर हूं खुद की पहचान की तलाश में
बेखबर लिपट गई कब खामोशी की लिबास में
पैरो के पहियों में मेरे लग चुके हैं जंग
सपने है टूट गए गए जिंदगी के रिवाज में
एक उम्दा कलाकार हो गई हूं
अब समझौते के इस किरदार में
फर्क नहीं समझता ये पाखंडी समाज
बेटी के आंसू और मुस्कान में
किससे लडू??
किससे झगड़ू???
किससे मांगू अपना अधिकार
देखते है बस सभी तमाशा
बैठ पलथी मार
ख्वाब था लडूंगी दुनिया के रण में
जिंदगी ने पटका पाबंद्दियो के चरण में
कोई क्या समझेगा यहां सब्र को मेरी
खिलौने की उम्र में मुझे चुना था कलम ने।।
ज्ञान की उम छोटी ही है अभी
पर जिम्मेदारियां मुझे बढ़ा रही है
शिकवा करू क्या उस रब से
हर मोड़ पर जिंदगी पढ़ा रही है।।।
जो दिखते नहीं वो दर्द बहुत है
जिंदगी के राहो में फर्ज बहुत है
उड़ान भरू या पंख कुतर दू अपनी
ऐ दिल तेरे सहारे के भी कर्ज बहुत है।
बेखबर लिपट गई कब खामोशी की लिबास में
पैरो के पहियों में मेरे लग चुके हैं जंग
सपने है टूट गए गए जिंदगी के रिवाज में
अब समझौते के इस किरदार में
फर्क नहीं समझता ये पाखंडी समाज
बेटी के आंसू और मुस्कान में
देखते है बस सभी तमाशा
बैठ पलथी मार
जिंदगी ने पटका पाबंद्दियो के चरण में
कोई क्या समझेगा यहां सब्र को मेरी
खिलौने की उम्र में मुझे चुना था कलम ने।।
पर जिम्मेदारियां मुझे बढ़ा रही है
शिकवा करू क्या उस रब से
हर मोड़ पर जिंदगी पढ़ा रही है।।।