पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार अर्चना विश्वकर्मा की एक कविता जिसका शीर्षक है “पता नहीं”:
तुम्हारे आने से इस बेरंग जीवन में रंग भर गए।
पता ही नहीं चला, कब इस मन में
खुशी के ख्वाब घर कर गए।
मैं अक्सर छोटी-छोटी बात पर रूठ जाती हूँ,
दूर हूँ तो क्या हुआ!
जितना दूर रहकर तुम्हे जाना है,
लेकिन
पता नहीं अंत में तुम्हें खोना है या पाना है
आगे का पता नहीं
आज तो तुम साथ हो बस यही काफी है।
ये थोड़े से अच्छे लम्हें ही काफी है।
क्योंकि
जिंदगी कभी नीम की पत्ते की तरह कड़वी तो कभी मिठी टांफी है।
पता नहीं,
या तो सिर्फ किस्सा ही बन कर रह जाऊँगी!
जो भी हो
शायद तुम्हारी यादों में ही सही जींदा तो रह पाऊँगी!