पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार नीरज रमेश "नीर" की एक कविता जिसका शीर्षक है “बेटी होती धन पराया?”:
बिटिया के मन में प्रश्न लहराया
बिटिया ने अपनी माँ से जब प्रश्न यही दोहराया ?
बेटी के इस यक्ष प्रश्न को
माँ ने अपने सरल ह्रदय से
कुछ इस तरह समझाया
माँ बिटिया से
रक्त से बनी रक्त से पली मेरे रक्त कणों की गुडिया हो तुम
बूँद बूँद से सींचा जिसने उस माली की बगिया हो तुम
ना तो बेटी धन होती है ना होती है पराई
ये तो उस माँ के दिल से पूछो,जिसने बेटी है ब्याही
कागज़ है किसी और कोख का लिखने को दी है स्याही
लेख नए जीवन का बनेगा , फूल नए मधुबन में खिलेगा
तेरी बगिया जब महकेगी , चहकेगा आँगन तेरा
नवजीवन वो मेरा होगा, नव मधुबन वो मेरा होगा
मेरे रक्त की नई शाख ने, नयी प्रीत की रीत चलाई
कब थी बेटी तुम परायी , तू तो है मेरी ही जाई
प्रीत की रीत जो है चली आई, रीत वही मैंने भी निभाई
कहती थी मेरी भी माई , नहीं है बेटी कभी पराई
नहीं तू बेटी कभी परायी
हर बेटी है जग की सच्चाई
कहे यही "नीर" की भी माई
पूरी दुनिया को जिसने है जाई
वो है किसी बेटी की जाई
नहीं है बेटी कभी पराई ,