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कविता: सावन (रंजना मिश्रा, कानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रंजना मिश्रा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “सावन”:


रिमझिम सावन की रातों में
उन मधुर तुम्हारी बातों में
मैं खो जाती थी जब प्रियतम
सब यादें मुझको आती हैं
हां मुझको बहुत सताती हैं
तेरा वह छुप करके आना
मुझको बाहों में भर जाना
कानों में कुछ कहकर जाना
पाकर सब कुछ भी न पाना
सब यादें मुझको आती हैं
हां मुझको बहुत सताती हैं
मन का वह उद्वेलित होना
तेरी यादों में यूं खोना
ना मिलने पर मेरा रोना 
तेरे ही ख्वाबों में सोना
वो यादें मुझको आती हैं
हां मुझको बहुत सताती हैं
प्रियतम तुम जब से दूर गए
औरों के तुम मनमीत भए
तुम स्वांग रच रहे नए-नए
ले चक्र द्वारिकाधीश भए
वो यादें मुझको आती हैं
हां मुझको बहुत सताती हैं