पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार नरेंद्र सिंह की एक कविता जिसका
शीर्षक है “बिटिया की विदाई”:
पीहर से पुत्री गमन पियर वसन वह पहन-पहन,
हहर हहर ,ठहर ठहर,चल रही
थी सहम-सहम ।
झपट झपट,लपट लपट,चिपक रही थी मातृ-वदन,
अश्रु-धार से सींच रही थी बिटिया अपने पितृ-सदन ,
सिहर सिहर,कहर कहर,माँ रो
रही विलख-विलख,
फफक फफक पिता रो रहे ,भाई भी कलप -कलप।
बहने जार जार रोये जा रही थी,
सखियाँ रो रो कर समझा रही थी
अन्य महिलाएं भी रोये जा रही थी
जब रानी को डोली बैठा रही थी।
कितनी सलोनी थी बिटिया रानी
ख़त्म हुई 20 वर्षो की वो कहानी।
अहर्निश माँ-पिता की सेवा करती थी,
तनिक न आहें वह कभी भरती थी।
बिटिया वहां जाकर राज करेगी?
या इसपर कोई वहां गाज गिरेगी?
बिटिया वहां कैसा सुख पायेगी?
या दहेज की वेदी चढ़ जायेगी?
क्या लिखा है भाग्य संयोग?,
कैसे होंगे ,उस घर के लोग?
बाबू यह सब शंका सोच सोच,
मन ही मन वे मसोस-मसोस।
बिटिया को बाबू विदा कर रहे थे,
अंदर अंदर अनहोनी से डर रहे थे।।
झपट झपट,लपट लपट,चिपक रही थी मातृ-वदन,
बहने जार जार रोये जा रही थी,
अन्य महिलाएं भी रोये जा रही थी
जब रानी को डोली बैठा रही थी।
कितनी सलोनी थी बिटिया रानी
ख़त्म हुई 20 वर्षो की वो कहानी।
अहर्निश माँ-पिता की सेवा करती थी,
बिटिया वहां जाकर राज करेगी?
बिटिया को बाबू विदा कर रहे थे,