Welcome to the Official Web Portal of Lakshyavedh Group of Firms

कविता: अपनापन न कोई जता रहा (नीलू गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नीलू गुप्ता की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अपनापन न कोई जता रहा”:

कितनी मांगे सूनी हो गई
कितने गोद खाली कर गए
कितने घर के सहारे छीन गए
कितने ही परिवार उजड़ गए
कमाने वाला न रहा घर में
संभालने वाला ही घर छोड़ गया
चूल्हा उदास पड़ा है कहीं
तो कोई रोटी को है तरस रहा
बिखर गया है सबकुछ उनका
महामारी ने चपेट लिया है ऐसा
बच्चे बिलखते नजर आ रहे
जन्म लेने की अब सजा पा रहे
रो - रो कर सहारा मांगते
पर अपनापन न कोई जता रहा
संवेदनशीलता मर गई है सबकी
मदद को न कोई हाथ बढ़ाता
तमाशा सा बन गया है जीवन
नाटक हो गया है जीना
फिर भी नहीं आती तुझे दया
कहलाता है तू दीनदयाल और शहंशाह
क्यों आंख मूंदकर बैठा है तू
क्यों अपने बच्चों से रूठा है तू
क्यों बना हुआ है कठोर और क्रूर
संसार की इस आफत को अब तो कर दे दूर।