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कविता: मैं हिम्मत नहीं हारूँगी (प्रीतिका छेत्री, सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रीतिका छेत्री की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मैं हिम्मत नहीं हारूँगी”:

 
मैं हिम्मत नहीं हारूँगी..
चाहे हो जाय कुछ भी ज़िंदगी में,
ना रुकूँगी बस चलती रहूँगी।
 
हँसते रहे चाहे हालात मुझपे..
कोसते रहे चाहे समाज मुझे,
उड़ाए चाहे खिल्लियाँ लोग मेरे हालात पे..
ना फ़र्क़ पड़ता मुझे उन सबसे,
मैं हिम्मत नहीं हारूँगी।
 
मान किसिके बातों का बुरा,
ना रोऊँगी ख़ुद के दिल को दुखा..
हैं अपनी सोच अपने साथ..
मैं तो बस चलती रहूँगी अपनी राह पर,
बस हिम्मत नहीं हारूँगी।
 
तो क्या हुआ हैं आज अँधेरा..
मुस्कुराती सुबह फिर आयेंगी,
मुझे नए दिन नए मौक़े देकर..
फिर हँसना सिखाएँगी,
हाँ मैं हिम्मत नहीं हारूँगी।
 
ना देती मैं किसिको इतना हक़ की
तोड़ कर मुझे छलनी करे मेरी आत्मा को..
हो सकता हैं गिर जाऊँ ,
फिर उठकर ख़ुद को सम्हाल..
चल पड़ूँगी अपनी राह पर..
पर हिम्मत नहीं हारूँगी।
 
क्यों गिरा दूँ मै अपनी आत्मसम्मान को..
किसी और के गिराने से..
क्यों छोड़ दूँ मैं ख़ुश रहना ..
जीवन के दुखों को पाकर..
मैं तो जीतूँगी हर लड़ाई को,
पर हिम्मत नहीं हारूँगी।
 
ना है परवाह की लोग क्या कहेंगे
जियूँगी मैं ज़िंदगी को अपने शर्त पर..
ना करूँगी अपने आत्मा की हत्या मैं ..
जो मिला ईश्वर की वरदान से मेरी माँ को..
लिपट जाऊँगी अपने माँ की गोद में ,
पर हिम्मत नहीं हारूँगी।
 
तपूँगी मैं सूरज सा फिर से चमक कर दिखाऊँगी
मैं हार नहीं मानूँगी
मैं हालात से लड़ूँगी
मैं आगे ही बड़ूँगी
मैं हिम्मत नहीं हारूँगी
मैं हिम्मत नहीं हारूँगी ।