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कविता: देह की परिधि से परे (सरस्वती मिश्र, कानपुर, उत्तरप्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सरस्वती मिश्र की एक कविता  जिसका शीर्षक है “देह की परिधि से परे”:

प्रेम दर्शाने के तमाम अनुभावों में से,
मैंने चुना था,
सूक्ष्म प्रेम-चिह्नों पर स्वयं का चिह्नित हो जाना ।
 
अगणित स्पर्शों की इच्छाओं को हराकर,
मैंने चुना था,
इच्छाओं के मूल में समाधिस्थ हो जाना ।
 
मेरी आँखों ने नहीं देखे, स्वप्न तुम्हारे शाश्वत साहचर्य के,
मैंने चुना था,
तुम्हारे अस्तित्व में घुलकर विलय हो जाना ।
 
साथ चलते कदमों की जोड़ी का मोह त्यागकर,
मैंने चुना था,
यात्रा के अंतिम छोर पर दो जोड़ी पैरों का एक हो जाना ।
 
तुम्हारे प्रेम को अपनी देह पर सजाने से इतर,
मैंने चुना था,
तुम्हारी अर्द्धांश हो, प्रेम में समरस हो जाना ।
 
थका हुआ प्रेम भले ही सुस्ताना चाहे देह के पर्यंक पर,
मैंने चुना था,
देह की परिधि से परे आत्माओं का चिर हो जाना ।