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कविता: वीर जवान (अनुपमा प्रधान, शिलांग, मेघालय)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अनुपमा प्रधान  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “वीर जवान”:

वो सरहद पर है तो घर पर चैन ही चैन है,
सीमा पर उनके पहरेदारी, पूरा आवाम जीता होकर बेचैन है।
 
जिस दिन पहनी वर्दी उन्होंने दिया ये ज़ुबान है,
देश की रक्षा के खातिर करना हर बलिदान है।
 
ऐसे वीर जवानों से
सलामत अपना जहां है ...
 
भारत माता है सब - कुछ रखना इनका मान है,
इनकी मान के खातिर घर - परिवार भी कुर्बान है।
 
सैनिकों की जिंदगी जीना कहा इतना आसान है,
ये तो सर पर कफ़न बांधें करता अपना काम है।
 
ऐसे वीर जवानों से सलामत अपना जहां है।
 
दुश्मन के चंगुल में फंसे तो हर प्रहार के लिए तैयार है,
समझौता करे इससे बेहतर मरने को तैयार है।
 
पीठ दिखाकर मैदान छोड़े नही इन्हे गवारा है,
इससे बेहतर खून की होली खेलते शहीद होना गवारा है।
 
ऐसे वीर जवानों से सलामत अपना जहां है।
 
भाग्यशाली कहते खुद को गर करते देश के लिए प्राण नयौछावर,
मरते - मरते भी कह जाते, माँ फिर आऊँगा इसी भूमि पर तेरा ही सुपुत्र बनकर।
 
हर जन्म देशभक्त बनकर इस धरती पर आना है,
शरीर के एक - एक खून का कतरा देश के हित में बहाना है।
 
ऐसे वीर जवानों से सलामत अपना जहां है,
 
ऐसे वीर जवानों से सलामत अपना जहां है ...