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कविता: फंदा (राधा गोयल, विकासपुरी, नई दिल्ली)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राधा गोयल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “फंदा”:

कब तक ये फंदा इन्तजार करता रहेगा?
कब ये फंदा अपराधी के गले में कसेगा?
कब तक न्याय आँखों पर पट्टी बाँधे रहेगा?
कब तक लोगों के सब्र का
इम्तिहान लिया जाता रहेगा?
कब तक फाँसी की तारीख बदलती रहेगी?
कब ये हथौड़ा ये आदेश देगा
कि ...
लटका दो बलात्कारी को सरेआम।
कानून को यूँ न करो बदनाम।
मत खेलो लोगों की भावनाओं से।
कहीं ऐसा न हो कि जनता
कानून को अपने हाथ में ले ले
क्योंकि अब और बर्दाश्त नहीं होता।
मैं रस्सी हूँ तो क्या हुआ
मुझमें भी संवेदना है
मैं सुन सकती हूँ उन सबकी चीत्कार
जिनकी बहन बेटियों के साथ
किया गया था घिनौना व्यवहार
कैसा है ये कानूनी व्यापार
कैसा गंदा है इनका आचार विचार
इन बहरों को सुनाई नहीं देती
पीड़ितों की हाहाकार