पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल
फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत
है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सुधीर श्रीवास्तव की एक कविता जिसका शीर्षक है “माँ कात्यायनी”:
महर्षि कात्यायन
की कन्या
माँ कात्यायनी
कहलाती,
माँ के षष्टम
स्वरूप में
जग में पूजी
जाती।
स्वर्ण सदृश्य
चमकती है माँ
शोक,संताप है हरती,
रोग, दोष भय माता अपने
भक्तों के हर
लेती।
कालिंदी के तट
जाकर
ब्रज की गोपियों
ने पूजा,
पति रूप में
मिलें कन्हैया
माँ कात्यायनी को
ही पूजा।
सूर्योदय से
पूर्व और सूर्यास्त में
जिसनें भी माँ का
ध्यान किया,
दिव्य स्वरूप में
माँ ने उसको
एकाग्रचित का
वरदान दिया।
धर्म, अर्थ, काम,मोक्ष का वर
माँ कात्यायनी
भक्तों को है देती,
शोधकार्य की
अधिष्ठात्री मैय्या
वैज्ञानिक
अनुसंधान कराती।
माँ की भक्ति जो
करे
मन में रख
विश्वास,
मैय्या की कृपा
रहे
सदा ही उसके साथ।