पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राधा गोयल की एक कविता जिसका शीर्षक है “कुछ रीत जगत की ऐसी है”:
कोरोना ने प्रकृति के साथ जीना सिखाया है।
अब सबको पता लगा है कि प्रकृति को
संतुलित रखना बहुत जरूरी है।
काम की आपाधापी में
प्रकृति से कब साथ छूट गया...
पता ही नहीं चला।
प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से...
जंगल काटने से...
फलदार- छायादार- औषधीय वृक्षों को काटने से,
और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन ने,
प्रकृति का कितना नुकसान किया था।
औद्योगिक इकाइयों से निकले कचरे ने,
नदियों को कितना प्रदूषित किया था।
उनका पानी... पीने की बात तो छोड़ो,
नहाने तक के लायक नहीं रह गया था।
नदियाँ नालों में तब्दील हो चुकी थीं।
इस कोरोना काल में... औद्योगिक
इकाइयाँ बंद हैं,
इसलिए कचरा भी नदियों में नहीं जा रहा,
तो नदियाँ भी स्वच्छ हो गई हैं।
यह बात इन दिनों समझ में आ रही है।
कम से कम अब तो हम समझ जाएँ।
प्रकृति से खिलवाड़ बंद कर दें।
यदि अब भी हम नहीं समझे
तो फिर हमें स्वयं को,
मानव कहने का कोई अधिकार भी नहीं है।
इन्हीं दिनों सबको परिवार का महत्व भी समझ में आया है।
दूर-दूर रहते हुए भी
रिश्तों में नज़दीकियां बढ़ी हैं।
फोन पर ही सही,
वीडियो कॉलिंग के माध्यम से ही सही,
एक दूसरे से बात करने की प्रवृत्ति,
एक दूसरे का हाल-चाल जानने की इच्छा हुई है।
इस समय लोगों को संयुक्त परिवार का
महत्व समझ में आ रहा है।
आजकल परिवार के साथ समय बिताने का
बहुत समय मिल रहा है।
दादा- दादी से पुरानी कहानियां सुनने की फुर्सत मिल रही है।
पुरानी यादें ताजा हो रही हैं
जिन्हें सब एक दूसरे से सांझा कर रहे हैं
जिन बच्चों के पास मां बाप के पास बैठने के लिए
दो मिनट का समय नहीं होता था
यहाँ तक कि बीमारी में भी
उनका हालचाल पूछने का समय नहीं होता था
आजकल उनके पास बैठ रहे हैं।
कोरोना विनाश तो लाया... लेकिन लोगों को उसने बहुत कुछ सिखाया।
हमारी प्राचीन संस्कृति के जीवन मूल्य...
आधुनिक पीढ़ी जिनकी अवहेलना किया करती थी,
आज वह उसे अपना रही है।
एलोपैथी के दीवाने...
आजकल अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए,
आयुर्वेदिक औषधियों का इस्तेमाल कर रहे हैं,
और अपनी प्राचीन चिकित्सा पद्धति पर गर्व कर रहे हैं।
माना कि इस बीमारी ने बहुत कुछ नष्ट किया है,
यदि इसका सकारात्मक पहलू देखें...
तो बहुत कुछ सिखाया भी है।
सारे विश्व को एकजुट कर दिया है।
सभी मिलजुल कर इससे लड़ने का उपाय ढूँढ रहे हैं।
माना कि बहुत कुछ खोया
लेकिन बहुत कुछ पाया भी तो है।
कुछ पाने के लिये हमेशा कुछ खोना भी पड़ता है।
कुछ रीत जगत की ऐसी है।