पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार विनय विश्वकर्मा की एक कविता जिसका शीर्षक है “इश्क़-ए बेरुख़ी ..”:
धरना है मेरी बेरुखी का हमारे इश्क़ से
अश्क़-ए सूरमा बहाये तो लगाना छोड़ दे ..!!
गर महसूस हो उसके यादों में बाद-ए सबा
ये इश्क़-मुफ़लिसी का अ जाना छोड़ दे..!!
आख़िर मजबूरी है तुझसे रुख़सत होना
तो ये इश्क़-ए तिलिस्म लाना छोड़ दे..!!
फ़िर गर मिले कहीं भीड़ में अचानक वो
तो देख मुड़कर वो मुस्कुराना छोड़ दे ..!!
हो जाये जंग तेरे नाम पर अमूमन कहीं
ये नजरअंदाज करें जीत जाना छोड़ दे ..!!
धरना है मेरी बेरुखी का हमारे इश्क़ से
अश्क़-ए सूरमा बहाये तो लगाना छोड़ दे ..!!
ये इश्क़-मुफ़लिसी का अ जाना छोड़ दे..!!
तो ये इश्क़-ए तिलिस्म लाना छोड़ दे..!!
तो देख मुड़कर वो मुस्कुराना छोड़ दे ..!!
ये नजरअंदाज करें जीत जाना छोड़ दे ..!!