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कविता: रैना में चाँद (नीतू चौहान, वाराणसी, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नीतू चौहान की एक कविता  जिसका शीर्षक है “रैना में चाँद”:
           
छलबती चमकती सी रैना,
चाँन्दनी रातो में नैना,
सुहावनी में तराशती,
अपनी प्रिय की मुख को नैना।
बादलो में चमकता एक तारा दिखा,
उसमें प्रिय का चमकता मुख दिखा।
प्रियतमा लजाती हुई बोली,
हे प्रिये! तुम चांद में हो, या
चांद ही तुम बन गए हो?
प्रिय बोला, प्रियतमा!
तुम्हारा प्रेम ही,
सागर की गहराईयो सा है।
इस लिये तुम्हें चाँद में मैं,
और दूर हूं मैं तो,
चाँद बना दिख रहा।