पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने
प्रस्तुत है रचनाकार आकृति की
एक कविता जिसका शीर्षक है “संवेदना”:
उसके एक ज़ख़्म पर
हर मर्तबा वो रोई,
उसकी कुशलता देख
तब रात वो सोई,
चल दिया जब बेटा सरहद पर
लिए जान हथेली पर,
किया स्पर्श
मा के पद - कमलों को
मा हो उठी अधीर,
बोली छुपाकर अश्रु - धारा को
मेरे लाल जियो हजारों साल,
बनकर राष्ट्र की ढाल
रखना खुद का भी ख्याल।
था किसे पता!
क्या खेल तकदीर दिखाएगी
सरहद पर जाते ही ,
जंग छिड़ जाएगी।
थे काले घनघोर काले बादल छाए
इधर,मा का दिल घबराए,
यह क्या!
हिल गया पूरा देश
सहसा आया शोक संदेश,
हृदय दहक गया मा का!
शहीद हो गया टुकड़ा जिगर का
कांपे कोमल मन, तब थरथराए
हीय हलचल भए,अंधड़ तूफान आए
अमावस रात्रि सी भर आया जग अधियारा,
छीन गया सबकुछ उसका
न था जिसका कोई सहारा।
बरसे भीगा जाए,मेघ दुख के काले
पीड़ा के शूल हृदय को भेद डाले।
सीने में सुलग रहे हैं अंगार जो,
उन्हें कौन बुझाए,
यह बीछड़न ,कठिन है,शाश्वत है,
यह उसे कौन बताए।
कहता जमाना हर रात की सुबह होती है,
ये बेकस रात,मगर अब,ख़तम नहीं होती है।
पीड़ित मा कितना रोई होगी,
तमाम रात न सोई होगी,
ना गया होगा टूक निवाला गले से
अपने लाल की तस्वीर में खोई होगी।
न कह सकेंगे लफ़्ज़ों में
वेदना उसकी,
चाहे कितनी भी मै करू संवेदना उससे।