पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नीतू झा की एक कहानी जिसका
शीर्षक है “आइ एम नॉट कैपेबल":
डॉक्टर नीता
हॉस्पिटल में सारी पेशेंट को देखने के बाद
आज जल्दी फ्री हो गई थी। आज उन्हें रजनी
के यहां बच्चे के नामकरण संस्कार में जाना था ।नर्स को बुलाकर उन्होंने कहा कि अगर
कोई इमरजेंसी ना हो तो आने वाले पेशेंट का अपॉइंटमेंट कल के लिए ले लेना। नर्स को समझा कर और फ्रेश होकर वह रजनी के यहां गाड़ी से निकल गई ।रजनी डॉक्टर नीता की पेशेंट
ही नहीं उनकी सहेली उषा जी की बेटी भी थी। कुछ दिन पहले जब रजनी जयपुर आई थी तब
उषा जी ने बहुत ही उदास होकर डॉ नीता को फोन किया और उनसे कहा था कि नीता! रजनी
अभी जयपुर में ही है ।उसे तुम्हारी हेल्प की जरूरत है । डॉक्टर नीता वह दिन याद कर
रही थी जब पहली बार रजनी से मिली थी। रजनी की सारी स्थिति और टेस्ट रिपोर्ट दिखाने
के बाद रजनी के मुंह से बस एक वाक्य निकला था "आई एम नॉट कैपेबल"। अनीता
ने उसे ढांढस बंधाया और सरोगेसी की सलाह दी थी। उसका सारा प्रोसेस भी समझाया था।
यही नहीं डॉक्टर नीता ने ही सरोगेट मदर का भी इंतजाम किया था । क्योंकि रजनी जयपुर
में अभी नई थी। भगवान की कृपा और डॉक्टर नीता की कोशिश रंग लाई और आज रजनी और उमंग
एक प्यारे से बेटे के मां बाप बन गए थे। सोचते सोचते कब रजनी का घर आ गया पता ही
नहीं चला। आज 8 साल के इंतजार के बाद उसके घर में उत्सव सा माहौल था।डॉक्टर
नीता स्पेशल रूप से आमंत्रित थी। उनके आते ही रजनी और उमंग ने उन्हें हाथ पकड़ कर
अपने पास बिठाया और बहुत सारा धन्यवाद दिया। उन्हें रजनी ने कहा कि थैंक्यू मासी
आज आपकी वजह से हमारे घर में खुशियां आई है। सचमुच सरोगेसी वरदान है हम जैसे लोगों
के लिए। डॉक्टर नीता ने उन्हें बहुत सारी बधाई दी और डिनर के बाद अपने घर लौट कर
जैसे ही बेड पर लेटी तो उन्हें बहुत ही संतुष्टि और गर्व का अनुभव हो रहा था आज
डॉक्टर होने पर। रजनी को खुश देखकर उन्हें
काफी अच्छा महसूस हो रहा था और सोच रही थी कि सचमुच मेडिकल साइंस ने कितनी तरक्की
कर ली है ।सरोगेसी सच में वरदान रुपी
तकनीक है जो न जाने कितने लोगों के आंखों में पल रहे सपनों को साकार करती है ।यह
सोचते हुए फिर अचानक से उन्हें रजनी के
प्यारे से बच्चे का ख्याल आ गया और मन ही
मन मुस्कुरा उठी ।उनके मन में भी ख्याल आया कि उनकी बहू सुगंधा की शादी को भी 3 साल पूरे होने को
आए हैं। अब तो सुगंधा को प्रमोशन भी मिल गया है ।कल ही बात करती हूँ उससे और अमित
से कि वो लोग भी अब माता-पिता बनने के बारे में सोचें ।सोचते सोचते उनकी आंख लग गई
।सुबह नाश्ते की टेबल पर नीता ने कहा कि तुम दोनों को भी माता-पिता बनने के बारे
में सोचना चाहिए। अमित और सुगंधा एक दूसरे की तरफ देखते हुए बोले कि माँ हम भी इसी
बारे में आपसे जरूरी बात करने वाले थे ।अमित ने बोला कि मैंने यह सोचा है कि हमारी
शादी को भी 3 साल हो गए हैं बेबी के बारे में सोचना चाहिए लेकिन अभी-अभी
सुगंधा का नया प्रोजेक्ट शुरू हुआ है और अभी उसे जमकर मेहनत करनी होगी। पूरे साल
भर का प्रोजेक्ट है तो क्यों न हम सरोगेसी से हेबी प्लान कर लें। हमारा बेबी भी आ
जाएगा और सुगंधा का प्रोजेक्ट भी पूरा हो जाएगा। हां और सब ठीक ठाक रहा तो मैं
अगले साल डायरेक्टर बन जाऊंगी। सुगंधा ने उत्साहित होकर बोला ।चुप करो तुम दोनों
डॉक्टर नीता ने उन्हें डांटते हुए बोला। मां बाप बनना कोई खेल है क्या उसके लिए
समय देना पड़ता है । एक दूसरे को भी और उसके बाद बच्चे को भी। समय ही तो नहीं है
माँ आप समझ नहीं रही हो ।यह प्रोजेक्ट हमारे लिए बहुत ही बड़ी अपॉर्च्युर्निटी है
।सुगंधा ने बहुत मेहनत और मन से शुरू किया है ये प्रोजेक्ट।और फिर आजकल तो सरोगेसी
से बहुत लोग मां बाप बन रहे हैं फिर हम क्यों नहीं। और लोग क्या कहेंगे? डॉक्टर नीता ने
अचरज से पूछा। लोगों का क्या है वह तो कहते ही रहते हैं । बस एक बार बेबी आ जाए तब
तक यह प्रोजेक्ट भी पूरा हो जाएगा और तब हम आराम से उसे समय भी दे पाएंगे। फिर भी
अगर किसी ने पूछा तो कह देंगे "आई एम नॉट कैपेबल"। सुगंधा ने तपाक से
जवाब दिया और फाइल उठाते हुए जल्दी से निकल गई ।उनके फैसले को सुन नीता अवाक् सी
बस उन्हें जाते देख रही थी।