पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अमृता पांडे की एक कविता जिसका शीर्षक है “मन के रंग हज़ार”:
कुछ प्रश्न उबलते हैं मन में,
जाने और अनजाने से
अरमान मचलते हैं.........
कभी प्रीत प्यार का हार लिए
कभी राग द्वेष का तार लिए
सपने अनगिनत उधार लिए
आशाओं का संसार लिए......
कभी चपल चंचल सी चितवन
कभी ज्वाला भड़काती पवन
उद्वेग, हास परिहास सरस
नित नये अवतार मचलते हैं........
मन बैरागी बन जाता है
ये पल दो पल का वादा है
भटकाने लगती राहों से
दे देकर वास्ता कल का
जिसको ना कभी देखा जाना
इस मकड़जाल में रह रह कर
कैकई कभी मैं हो जाती
और इच्छाएं मेरी मंथरा......
विवेकशून्य मन जब हो जाता
बस में कुछ ना फिर रह जाता
दासी की दासी हो जाता
लोभों में खुद को उलझाता
लग गई गाॅंठ जब मंथन में
मुश्किल है इसको सुलझाना
है अंत नहीं इच्छाओं का
जीवन का अंत मगर सच है
क्यों उलझायें इस ऊहापोह में
इस तन मन को, इस जीवन को
यह प्रश्न मगर अब भी जस है....।