पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार नरेश चन्द्र उनियाल की एक कविता जिसका
शीर्षक है “दिल्लगी”:
दिल्लगी का तुझ से कोई,
भी इरादा था नहीं,
मुस्कुराहट तेरी ने,
मुझको दीवाना कर दिया।
खूबसूरत नज्म
तेरी,
गीत और कविताओं ने,
रोज ही महफ़िल मे तेरी,
मेरा आना कर दिया।
बहुत मीठी
तेरी बातें,
और भोलापन तेरा,
इनकी साजिश ने फकत,
अपना यराना कर दिया।
रोज गुड मार्निग
सुबह की,
शाम की शुभ रात्रि ने,
बात हम दोनों की,
करने का ठिकाना कर दिया।
कर में जो धारण
किये थीं,
हरित वर्णा चूड़ियाँ,
मधुर उनकी खनक ने,
मेरा मुस्कुराना कर दिया।
छन्द क्या हैं गीत क्या,
तुझको पता नहिं था 'नरेश'
उसकी संगत ने तेरा यह,
गजल गाना कर दिया।
दिल्लगी का तुझ से कोई,
भी इरादा था नहीं,
मुस्कुराहट तेरी ने,
मुझको दीवाना कर दिया।
गीत और कविताओं ने,
रोज ही महफ़िल मे तेरी,
मेरा आना कर दिया।
और भोलापन तेरा,
इनकी साजिश ने फकत,
अपना यराना कर दिया।
शाम की शुभ रात्रि ने,
बात हम दोनों की,
करने का ठिकाना कर दिया।
हरित वर्णा चूड़ियाँ,
मधुर उनकी खनक ने,
मेरा मुस्कुराना कर दिया।
छन्द क्या हैं गीत क्या,
तुझको पता नहिं था 'नरेश'
उसकी संगत ने तेरा यह,
गजल गाना कर दिया।