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कहानी: खूँटी (सीमा गर्ग मंजरी, मेरठ, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “खूँटी":

माँ ओ माँ!

रिंकू ने कमरे में से आवाज लगाई तो साग काट रही नीता के हाथ रूक गये और कमरे में जाकर पूछा कि

क्या बात है, क्यूँ चिल्ला रहे हो बेटे ?

झल्लाते हुये रिंकू माँ से बोला कि

 "माँ ! आप बिल्कुल भी देख कर काम नहीं करती हो । यहाँ मेज पर मेरे कालिज के जरुरी कागजात रखे थे । अब वह नहीं मिल रहे हैं । मैने सारे मेंं ढूँढ लिए हैं । "

रिंकू माँ पर बिगड़ता हुआ बोला

"यहीं पर होंगे बेटे!

"और कहाँ जा सकते हैं?

"जरा ध्यान से देखो ।"

हो सकता है कि 

सुबह मेज पर सफाई करते हुये इधर-उधर रखे गए होंगे । "

नीता ने बेटे को तसल्ली देते हुए कहा ।

बेटे को परेशान क्रोध में देखकर नीता रसोईघर का काम छोड़कर रिंकू के जरूरी कागजात ढूँढने में लग गयी ।

"मम्मी बहुत जोर से भूख लगी है ।जल्दी से खाना लगा दो!"

स्कूल बैग एक ओर पटक कर शिल्पा बाहर से ही चिल्लाई ।

बेटी की आवाज सुनकर नीता रिंकू के कमरे में से निकल रसोईघर में आई। और जल्दी से सब्जी छौंक कर आटा गूंथने लगी ।

"क्या माँ!

"आपने अभी तक खाना भी तैयार नहीं किया ।"

"आप तो कोई भी काम ढंग से नहीं कर सकतीं ।"

"आपको तो पता है ना कि मुझसे भूख बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती ।"

"माँ आप अपनी बेटी से प्यार नहीं करती हो ना इसलिये आपको मेरे भूखे पेट की कोई चिंता नहीं है ।"

शिल्पा माँ को समय से खाना न बनाने के साथ ही प्रेम न करने का उलाहना भी दे रही थी ।

शिल्पा मुँह फुलाये अपने कमरे में पहुँच कर दूरदर्शन देखने लगी ।

बेटी की बातें सुनकर सीधे सादे स्वभाव की नीता बात अनसुनी कर गयी और सिर झुकाकर मनोयोग से खाना बनाने में लग गयी ।

 

"आ जाओ !

"खाने की मेज पर जल्दी से सब लोग मैने खाने की थालियाँ लगा दी हैं ।"

नीता ने डाइनिंग टेबल पर खाना सजाते हुए पति और बच्चों को आवाज लगाई ।

तीनों बच्चें और पति खाने की मेज पर आ बैठे थे ।

दो सब्जी भाजी रायता लगाकर नीता गर्मागर्म चपाती सेंकने लगी ।

"ओ माँ कितनी मिर्ची डाली है आलू-टमाटर में!"

"मेरे तो मुँह कान से धुँए निकलने लगे हैं । "

छोटे बेटे पिंकू ने नाक भौं सिकोड़ते हुए सबके बीच कहा ।

"केवल एक हरी मिर्च डाली थी मैने ।तुझे तो बस फालतू बात बनाने की आदत है ।"

 रसोईघर से ही नीता ने बोलते हुए पिंकू को चुप कराना चाहा । तो पतिदेव बच्चों की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले कि--

"नीता ! कोई काम तो ऐसा किया करो जो किसी को तुमसे शिकायत का मौका नहीं मिले। "

"रोज ही सबकी तरफ से सबके मन में शिकायतों का पुलिंदा तुम्हारे लिए तैयार रहता है ।"

"आखिर अपनी जिम्मेदारियाँ क्यों नहीं समझती तुम !"

खाने की मेज पर पतिदेव ने बड़े होते बच्चों के सामने ही जली कटी बातें सुना दी ।

"मैं कुछ नहीं कहती हूँ ना!

इसलिये तुम सब लोग मुखर होकर मेरे पीछे पड़े रहते हो ।"

कहते हुए नीता ने आँखों में भर आये आँसुओं को छिपाने की नाकाम कोशिश की ।

नीता का मुँह उतर गया । बर्तन साफ करती नीता का मूड खराब देखकर सब चुपचाप अपने कमरों में चले गए ।

 

खिन्न मन से नीता ने रसोईघर के काम निबटाये और अनमने मन से अपने कमरे मेंं जाकर लेट गयी ।

मन में सोच विचार का तूफान उमड़ रहा था ।

घर के वातावरण के परिपेक्ष्य में सोचते हुए जब नीता की नजर सामने दीवार पर गई तो खूँटी पर सबके कपड़े का ढेर लदा हुआ था ।

नीता का खिन्न मन खूँटी से अपनी तुलना करने लगा ।

खूटी के तो भाग्य में ही बोझा ढोना लिखा है । एक बार मकान की दीवार में जिस दिन से गाड़ दी जाती है । उसी दिन से मकान में रहने वाले छोटे से लेकर बड़े सरकार तक जब भी जिसका जी चाहे वो अपना बोझा उतारकर खूँटी के माथे पर लटका देते हैं और ठाठ से आरामगाह में चलते बनते हैं ।

बेचारी खूँटी मौन रहकर अपनी किस्मत को कोसती होगी और बोझा ढोती आज भी उसी दीवार में दृढ़ जडी खडी है ।

अचानक उसके मन में ख्याल कौंधा कि नीता और खूँटी में कोई फर्क नहीं है । दोनों ही अपने अपने हिस्से का बोझा ढो रही हैं ।

"मैं भी जिस दिन से इस घर में आई हूँ, तबसे आज तक मैंने भी मौन खूँटी के समान ही परिवार के लोगों के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया । लेकिन मेरी भावनाओं आकांक्षाओं की किसी को जरा सी भी कोई परवाह नहीं है । "

अपनी इज्जत अपने सम्मान के लिए मुझे इनके दिल में स्वयं जगह बनाने के लिये कुछ करना होगा ।

सोचते-सोचते यूँ ही आँख लग गयी । आज सुबह नीता बिस्तर से नहीं उठी जबकि सभी रोज की तरह से सुबह सवेरे चाय की प्याली की प्रतिक्षा कर रहे थे ।

बेटे की चाय के लिए आवाज सुनकर नीता ने बाहर निकलकर लगभग चिल्लाने के अंदाज में कहा कि "खबरदार ! अगर किसी ने मुझसे अपने किसी भी काम के लिए कहा ।

आज से सब अपने काम अपने आप करेंगे ।"

"मैं किसी के लिए कोई भी काम नहीं करने वाली हूँ । "

नीता का ऐसा नवीन रूप देखकर सब बगलें झांकने लगे ।

बड़े बेटे ने माँ को प्यार से आरामकुर्सी पर बिठाया ।

पतिदेव नीता का हाथ अपने हाथ में लेकर सहलाने लगे ।

बिटिया ने प्यार से माँ के गले में बाहें डाल दी ।

छोटे बेटा नीचे कदमों में बैठ गया ।और प्यार से माँ पैरों को दबाने लगा ।

"प्यारी माँ !आज आप हमसे खफा क्यूँ हैं ?

"मैं क्यों खफा होने लगी तुमसे ।"

"किंतु तुम सब यह बात जान लो कि तुम्हारी असंतुष्टि का कारण तो तुम्हारे भीतर ही है।"

"मै दिन भर चक्करघिन्नी के जैसे एक पैर पर खड़े होकर काम करती हूँ

उसके बाद भी काम बढिया न करने तुम सबके ताने सुनती हूँ ।"

नीता की नाराजगी समझकर पतिदेव ने आश्चर्यचकित कहा कि

"अरे नीता!

तुम सुबह सवेरे ये कैसी बातें ले बैठी हो !

"हम सब तुम्हें बेहद प्यार करते हैं ।

हम तुम पर अपना अधिकार समझते हैं इसलिए बेझिझक मन की बातें कह देते हैं ।"

 "क्यों जी,

कभी प्यार क्यों नहीं फूटता ?

आप सबकी बातों से ।"

नीता चिढ़ते हुए बोली कि

"मैं भी तो परिवार में हमेशा तुम सबके काम का बोझा अकेले ही ढोती हूँ ।

क्या तुम सबने मुझे उस खूँटी के जैसे समझ रखा है । "

नीता ने सामने खूँटी पर लदे कपडों की ओर इशारा करते हुए कहा ।

नीता की अनोखी बात सुनकर सभी एक दूसरे का मुँह ताकने लगे ।

बडे बेटे ने कुछ सोचते हुए कहा कि-

"अरे माँ

आप क्या कह रही हो ।

माँ आप तो हमारे परिवार की खुशियों के लॉकर की चाबी हो जिसने प्रेमडोरी से बाँधकर हम सबके जीवन को व्यवस्थित किया है ।

"आपके बिना हम सब और आपका ये परिवार सब अधूरे हैं । "

"आप जो पूरे दिन खुशियों की दौलत हम सब पर बरसाती हो।"

"हम सब की छोटी सी बात का भी पूरा ध्यान रखती हो !"

 "उसी के कारण पापा कार्यालय का काम पूरे दिन बैठकर अच्छे से निपटाते हैं और परिवार के लिए खुशियाँ जुटाते हैं । "

"हम सब तुम्हारे बच्चें सुखद भविष्य के लिए बिना किसी तनाव के पढाई करके मैरिट सूची में नाम दर्ज कराते हैं ।"

"मेरी प्यारी माँ हमारे परिवार की इन सब सुन्दर उपलब्धियों के पीछे आपकी खूँटी में खुशियों के लॉकर की सम्भाल कर रखने वाली चाबी की उपस्थित ही तो है । "

पतिदेव और बच्चों के हृदय की निश्छल मनमोहक बातें सुनकर नीता के चेहरे पर खुशियों की खुश्बू महकने लगी । तनावपूर्ण वातावरण के बादल छँट गये और खुशियों की धूप खिल आई ।