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ग़ज़ल (सलिल सरोज, नई दिल्ली)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सलिल सरोज की ग़ज़ल:

अपना गुनाह छुपाने को कोई गिरेबाँ ढूँढिए

जो कुछ भी ना कह सके,वैसी जुबाँ ढूँढिए

 

हमें बुरी  आदत  है सच  को  सच कह देने की

जो सच को झूठ कह सके,कोई मेहरबाँ ढूँढिए

 

चमन  में  गुल   खिला   करते  हैं  हर  रंगो - बू  के

जो गुलशन को मसान कर सके,वही बागबाँ ढूँढिए

 

ये  लोकशाही है , यहाँ सबकी सुननी पड़ती है

मुर्दों पर राज़ करना हो तो फिर बियाबाँ ढूँढिए

 

आपके ये आँसू भी आपके दाग धो नहीं पाएँगे

नदामत*  की  खातिर  आब - ए - रबाँ*  ढूँढिए

 

फसाद से कभी अमन  की खेती नहीं की जाती है

अपनी हस्ती गर बचानी हो तो,नया उनवाँ* ढूँढिए

 

*नदामत- पश्चाताप

*आब-ए-रबा- बहता हुआ पानी

*उनवाँ- प्रकार