पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ• राजेन्द्र मिलन की एक कविता जिसका शीर्षक है “कल और आज”:
कभी भारत था देश
महान
विश्व में प्रमुख
रही पहचान
आज सब लगता है
सपना
काम बंदों
का है
ठगना
वक्त ये पूछ रहा है
कि जनता सोच रही है.....
प्यार की नदियां
बहती थीं
सिया-सलमा संग
रहती थीं
आज सड़कों
पर नंगा नाच
बहन-बिटिया की
लुटती लाज
वक्त ये पूछ रहा
है.................
एक दूजे का कर
सम्मान
छेड़ते चौपालों
पर तान
होगया खंडित
पूर्ण सुदेश
जाति-वर्गों
में बढा़ क्लेश
वक्त ये पूछ रहा है .......
आज तक नहीं ग़रीबी मिटी
नारियों पर न
जु़ल्मत घटी
भ्रष्टता पर ना
अंकुश लगा
आदमी जाता रोज़
ठगा
वक्त ये पूछ रहा है .......
बने जनसेवक आज
नबाब
सवालों का नहीं
कोई जवाब
समस्याएं बढ़ती
जातीं
फांस पर फांस
चढ़ी जातीं
वक्त ये पूछ रहा है .......
विश्व में बढी़
मित्रता है
कहां कम हुई
शत्रुता है
चांद तक भर ली
भले उडा़न
भूख से मरता रहे
किसान
वक्त ये पूछ रहा है........
आग चूल्हे की
ठंडी पडी़
कराहती हर पगडंडी
पडी़
जीविकोपार्जन की
तंगी
दिखाते सपने सतरंगी
वक्त ये पूछ रहा है........
महज़ बाजा़र बनी
संसद
बन गया पैसा ही
मक़सद
ठाठ मंत्री और
सेठों के
झूठ और
लाग-लपेटों के
वक्त ये पूछ रहा है........
चाहना थी
होके आज़ाद
खुशी से गुंजित नाद-अनादि
शांति से
बीतेगा जीवन
भला कब होगा
परिवर्तन ???
वक्त ये पूछ रहा है ......?.
कि जनता सोच रही है ....