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कविता: अहसासों की धुरी पर (सीमा गर्ग मंजरी, मेरठ, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अहसासों की धुरी पर:


अहसासों की चंचल सरिता में,
हृदय में नित स्पन्दन होता है!
भाव लहरों से झंकृत अन्तस में,
अवगाहन से विश्लेषण होता है!
आवागमन है जग में क्यूँ निरन्तर?
अहसासों की धुरी बताती मन्तर!
 
कभी चंचल चितवन मानस मन में,
कर्म का दर्पण सत्य राह दिखलाता!
कभी निश्चेष्ट क्लांत उर आँगन में,
चाहने पर भी कुछ नजर ना आता!
अहसासों की धुरी मेंं संघर्ष निरन्तर है,
मन मंथन से मिले देवरस चमत्कार है!
 
अंबर की शोभा से चमके तारे सितारे,
भोर यामिनी के ईश्वरीय नवल चितेरे!
रवि,शशि,संध्या,दिन,रैना के तुष्ट पहरे,
नियमबद्ध चलें सब एक पल न ठहरे!
किस शक्ति से ओतप्रोत भण्डार है,
अहो!भाव निहाल निरखता संसार है!
 
बाग,बगीचें,वन,चमन,उपवन में,
झील,नदी,सरसरि निर्झर झरनों मेंं!
खग कलरव अलि गुनगुन गुँजन में,
प्रफुल्लित सुमन रमणीय मकरंद में!
मोती सम नहलाती शबनमी दूब में,
अहसासों की धुरी दिव्य अनुभूति में!
 
इस चमन का माली रहता न मौन है,
रहमत बरसाती शक्ति पूछो कौन है?
करूणासिंधु प्रभु का सर्वत्र जलवा है!
कण कण में जीवित वह विद्यमान है!
उनकी मर्जी बिन हिलती ना जुबान है,
अहसासों की धुरी "मंजरी"की शान है!