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कविता: नारी रूप (डॉ● महावीर प्रसाद जोशी, पश्चिम भीलवाड़ा, राजस्थान)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉमहावीर प्रसाद जोशी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “नारी रूप”:

नारी रूप,
जैसे चमकीले रैपर में लिपटी सिगरेट,
पैकेट को खोलो,सिगरेट जलाओ,
अधरों के बीच अटकाकर ,
धुआं उड़ावो,और
बचे हुए ठूंठ को फैंक दो।
मगर इस व्यसन का अंजाम,
अवश्य देखलो।।
कि आखिर सिगरेट आपको पी रही है,
आप स्वयं तो मर चुके,
लेकिन सिगरेट जी रही है।
इस हृदय-विदारक घटना उपरांत,
स्वतः समझ जावोगे कि,
चमकीले रैपर वाली सिगरेट,
दिल को छेदने वाली एक छुरी है।
हकीकत में सिगरेट पीना,
एक आदत बुरी है।।
नारी रूप
जैसे आलीशान कांच के गिलास में,
छलकता हुआ जाम,
अधरों पर लगाने को जी  चाहता है,
उफनता यौवन रंग जमाना चाहता है,
मगर शराब के नशे का,
अंजाम भी देखलो,
कि दिन के उजाले, गुलाबी रातें, काली 
गिलास और बोतल के साथ ही,
पाॅकेट भी खाली।
शयन कक्ष बन जायेगा,
सड़क किनारे की नाली।
मुफ़्त में मिलती रहेंगी ,
राहगीरों की गाली।।
यदि मधुशाला के आशिक ही बनना है
तो कमर कसलो।
जितना हँसना है,जी खोलकर हँसलो।
फिर यह परदेशन हँसने नहीं देगी।
बीबी,बाल-बच्चों के चक्कर में
फ॔सने नहीं देगी।
नशे की चूर हालत में भी,
यही बुदबुदावोगे कि,
छलकता जाम दरिद्रतादायी उद्योग है।
हकीकत में शराब पीना बुरा रोग है।।
नारी रूप,
शबनम सा बेदाग़ और,
चपला सा चंचल, ताश का खेल,
पाँचू मौची से लेकर अन्न दाता तक,
सभी इस खेल के शौकीन।
एक-दूसरे की नज़र बचाकर,
सभी इसे खेलने में तल्लीन। ।
मगर जीतकर हँसते किसको देखा है
नज़र आती है, हारने वालों की भरमार
जीतने वाले बने भगोड़े,
और मात खाने वालों की लंबी कतार,
आँखों में आँसू लिये,
हृदय में ग्लानि लिये,
अपनी बेबसी पर मरने तुली है।
फिरभी इस खेल के विज्ञापन की होड़,
उत्साहवर्धक और खुल्लम खुली है।।
जवानी के ढलने में देर नहीं  लगती।
परिस्थितियाँ बदलने में देर नहीं लगती
आज नहीं तो कल स्वयं कहोगे,
कि तीन-पत्ती के जुए उपरांत बचा धन
केवल और केवल पश्चाताप है।
हकीकत में ताश का खेल,
मानवता के लिए अभिशाप है। ।
नारी रूप,
स्वर्ग की अप्सराओं सदृश,
वैश्यालयों में होता नृत्य का दृश्य।
बिगड़े नवाबों, जागीरदारों  और,
रईशजादों के टाइम-पास का रहस्य।।
तथाकथित हूर,
हर युवा के लिए एक अबूझ पहेली।
बदनाम रास्तों में विचरण करने वाली,
बदनामियत की एक खास सहेली।।
दिखने में दीपक सी सुन्दर बाती।
ना ना परवानों के दिलों में लहराती।।
नज़राने लुटाते रहो तो मनमोहक।
जेब है खाली, तो तनद्रोहक।।
नृत्यांगना को छूने की साफ मनाही है।
खजाना भरना ही ,
इनके महल की सतत्  शहनाई है। ।
वक़्त बीतेगा, खजाना रीतेगा तो,
स्वतः निकालोगे यह निष्कर्ष,
कि तवायफों द्वारा प्रदर्शित कला,
एक कला नहीं, कला का उपहास है।
ज़ोश ज़ोश में जो गच्चा खा गया,
उसीका सवा-सत्यानाश है। ।