पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार रविकान्त सनाढ्य की एक कविता जिसका शीर्षक है “तलाश”:
अगर तलाशना है
जीवन में कुछ
तो प्रेम तलाशिए !
वरना यह जीवन हो
जाएगा
शुष्क मरुस्थल !
अपने भीतर के
आनंद को तलाशिए,
दूसरों को आह्लाद
देने
की विधियाँ तलाशिए !
कितने सुन्दर रंगो मे
खिलता है वन में पलाश !
उसकी रंगीनियों
से कीजिए
उमंग की तलाश !
हताशा को करिए
विदा
पैदा कीजिए आशा का प्रकाश !
हैवानियत का तभी होगा नाश
जब इंसान को इंसान समझ
करे उनमें मानवता
की तलाश !
संवेदनाएँ तलाशिए !
चैन और सुक़ून
तलाशिए ।
स्वयंप्रकाश रूप
धरिए
हे प्रकाश के अमृतपुत्र ,
जीवन में निहित
अखूट
संभावनाओं को तलाशिए !
आपकी यह तलाश
जीवन को
चीन्हेगी ।
मानवता को उमंगित
करेगी !
जीवन में कुछ
तो प्रेम तलाशिए !
शुष्क मरुस्थल !
की विधियाँ तलाशिए !
कितने सुन्दर रंगो मे
खिलता है वन में पलाश !
उमंग की तलाश !
पैदा कीजिए आशा का प्रकाश !
हैवानियत का तभी होगा नाश
जब इंसान को इंसान समझ
संवेदनाएँ तलाशिए !
हे प्रकाश के अमृतपुत्र ,
संभावनाओं को तलाशिए !
चीन्हेगी ।


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