पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी
जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका
स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कमला सिंह 'महिमा' की एक कविता जिसका शीर्षक है "माँ":
माँ जीती - जागती ईश्वर की मूरत सी लगती है
माँ के कदमों में जीवन भी जन्नत सी लगती है
माँ ना हो तो बासंती हवाएँ, शुष्क पतझड़ सी लगती है
माँ है तो जीवन की हर राहें, आसान- सी लगती है |
बच्चे को बचाने हेतु, यमराज से भी वह लड़ जाती है
माँ है तो मुर्झाये बागों में भी, हरियाली छा जाती है
माँ प्रेम की निश्चल-पावन-अथाह-समंदर सी लगती है |
बसंत बहार, शीतल बयार, पर्व-त्योहार सी होती माँ
यशोदा, देवकी या कौशल्या; माता के हैं रूप अनेक
माँ की हर छवि में देखो , त्याग की देवी हीं बसती है |


0 Comments