पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार ऋतु गुप्ता की एक कविता जिसका शीर्षक है “न्याय की आस मे .....फिर एक बेटी”:
हुआ गर ना न्याय
आज तो
सकल धरा फिर
रोयेगी,
नर विहीन ये धरती
होगी
सारी सृष्टि
रोयेगी।
जब जन्मेगी ना नर
को नारी
चिंतन मे ब्रह्म
होंगे
उलट पलट ये
सृष्टि होगी
हर तरफ लहु प्रलय
होगी
कपूतों की मांऐ
भी सुन ले
भूल जाएं अब पूतो
को
जैसे बोये बीज
उन्होंने
ऐसी ही तो फसल
होगी।
गर सिखाया होता
सम्मान नारी का
क्यू कर ऐसी
घटनाऐ होती
क्यो करके एक
बेटी मरती
क्यो बेटी की मां
रोती
रक्षण रक्षण बहुत
हुआ अब
अब तो बस भक्षण
होगा
जहां हुआ अन्याय
नारी संग
वहीं फैसला उस दम
होगा
जो तुम आओ ना
गिरधर
कोई शिकायत तुमसे
नही
बस इतना सक्षम
करना नारी को
अस्मिता अपनी बचा
पाये
गंगा तुलसी बहुत
हुई अब
रण चण्डी हमे
बनना है
हर नर पिशाच ,हर दानव का
सर धड़ से अलग
करना है
जैसे तड़पी बेटी
की मांऐ
कपूतों की मांऐ
भी तड़पेगी
नर विहीन ये धरती
होगी
सारी सृष्टि
रोयेगी