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कविता: ज्योति से ज्योति (रंजना बरियार, मोराबादी, राँची, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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[ज्योति और उसके पिता की तस्वीर PC: रंजना बरियार]

मैं  ज्योति  हूँ....

मैंने    देखे   हैं    असाध्य   तमस्,

तरूणाई  में  ही  माँ   की   ढलती  हुई  वयस,

बाबा के पीठ से सटे पेटजठराग्नि की तमस्,

क्षुधातुर   छोटी  बहनों   की  तड़प,

मैं  ज्योति  हूँ.....

मैंने   देखे   हैं   असाध्य   तमस्,

माँ  के   सूखे  स्तन  से  चिपके भाई   की मौत,

वेदना से तड़पती बिलखती माँ की टूटती साँसे,

दिलासा  देते   बाबा   की   तड़प,

मैं  ज्योति  हूँ.....

मैंने  ठान   लिया  है  तमस्   मिटाना,

हूँ  मैं  मज़दूर  नन्दिनीनहीं   किया  गुनाह  है,

हैं बाबा  मज़दूर पर डिग्रीविहीन वो  शिक्षित  हैं,

नहीं हैं  डिग्रीधारी  कुलीन  अशिक्षित!

मैं  ज्योति  हूँ.....

मैंने   ठान   लिया है   ज्योति   जलाना,

हूँ  मैं   शिक्षित  मज़दूर   की   शिक्षारत  तनया,

हूँ  कृत  संकल्पित   करना   मुझको  दूर  तमस्,

चमक में प्रकाश के देखना है साफ साफ!

मैं  ज्योति  हूँ.....

सेवक  हूँ   श्रमिक   ज्योति  फैलाती  हूँ,

रूग्न  पिता  को  बैठाकर  साइकिल  पर लायी,

हरियाणा से दरभंगा लाने में तनिक न  घबड़ायी,

झाँसी  की  रानी  बनूँगी नहीं  मैं  थमूँगी!

मैं  ज्योति  हूँ........

सेवक बनूँगीमज़दूर नहीं  बनना मुझको,

शिक्षा पूरी करूँगीसामंतों संग सेवक  है बनना,

करते हैं सभी मज़दूरीचाहते  नहीं  हैं कहलाना,

सेवक बनकर शान से मज़दूर कहलाऊँगी!

मैं  ज्योति  हूँ......

ज्योति  से  चहुँओर   ज्योति  मैं  जलाऊँगी,

बाबा होंगे नहीं तब मज़दूरसिंहासन  मैं  लाऊँगी,

गले से उनके  मैं  तब मज़दूर का तमग़ा हटाऊँगी,

सेवक  बनकर  शान से  मज़दूर कहलाऊँगी!

मैं  ज्योति  हूँ.....

ज्योति  से  ज्योति  जलाऊँगी!

ज्योति  से  ज्योति  जलाऊँगी!