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कविता: बापू तेरे देश में (श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल', लहार, भिण्ड, मध्य प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बापू तेरे देश में”:
 
यह कैसा अंधेर मचा है, बापू तेरे देश में।
 
लगता अब तो जहर घुला है, इस पूरे परिवेश में।
 
माँ - बहनें लाचार बेटियाँ चीख पुकार रहीं हैं -
 
इस समाज में छुपे भेड़िये, हैं मानव के वेश में।
 
 
हिंसा, लूट, डकैती, चोरी, हड़प नीत व्यापार है।
 
नजर उठा कर कहीं देख लो, दिखता भ्रष्टाचार है।
 
नहीं सुरक्षित बहू - बेटियाँ, लाज - आबरू खतरे में -
 
निर्धन हुआ किसान, युवा भी, बे - हिल्ले रुजगार है।
 
 
प्रगति हुई है माना मैंने, ढोलक तबले मौन पड़े।
 
कांगों, बैंजों, ड्रम बजते हैं, लोग झूमते खड़े - खड़े।
 
वीणा, इकतारा, सारंगी, बंशी सहमी -
 
सहमी सी -
 
बैण्ड खड़े हैं सीना ताने, ऐंठे और तने अकड़े।