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कविता: बेटी से बहू बनने की सफर (पिंकी महेता शाह 'दिशा', अमदावाद, गुजरात)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पिंकी महेता शाह "दिशा"  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बेटी से बहू बनने की सफर”:
 
 
आकर खडी मैं जिदगीके उस
पथ पर,
जहा पर कोई साथ नही मेरे
सायाभी लगतने लगा हे पराया
आज मेरी ईस हालात पर ....
 
बेटी बनकर पैदा हुइ मैं
माने एकही बात शिखाइ
जाना हे पराया घर तूजे
 
पापाने शिस्तके नियम बताये
बेटी बनकर शिश झुकाकर
अपनी आरजूओकों काबू करना
शिखाया
 
शादी हुई सासने रिवाज थोपे
कहा अब घरकी आबरू
सम्हालना जिम्मेदारी तेरी
 
पतिदेवने पहेले दिन कहा हमसे
मेरे सपने अब पूरे करने हे तूझे
उम्मीद बहोत हे तूजसे सम्हाल अपने तरीके से
 
समाजने कैसे नियम बनाये !
हो गई एक दिनमें बेटी से बहू बेचारी
 
पाँवमें पहेना दी समाजने मेरे
पायलकी जगह रिवाजोकी बेडी
आजभी हालत यही हे समाजमें
नारी की ......