पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार अर्चना राय "खुराफ़ाती" की एक कविता जिसका
शीर्षक है “वो मजदूर हैं, और हम मजबूर हैं”:
उनके तलवे की
दरारें
कभी घटती नहीं
और घर में आराम से बैठे-बिठाये
हमारी रातें कटती नही।
क्यों ?
क्योंकि वो मजदूर
हैं और हम मजबूर हैं।
उनके चप्पलों के
फीते चलते-चलते
जैसे चटक-से गये हैं।
अलमारी में रखे हमारे जूते-चप्पल
अपनी जगह पर मानो अटक-से गये हैं।
क्यों ?
क्योंकि वो मजदूर
हैं और हम मजबूर हैं ।
उनकी जतन से बनाई
गई रोटियों को
माल गाड़ी रौंद कर चली जाती है,
हमारी फुरसत से
बनाई गई आइसक्रीम पानीपुरी
शौक से चुहिया कुतर जाती है।
क्यों?
क्योंकि वो मजदूर
हैं और हम मजबूर हैं।
वो औरत एक बच्चे
को जनकर भी
एक सौ साठ मील का सफ़र
यूं तय कर जाती है,
हम और हमारी
पड़ोसनें
घर में लगे "ट्रेड मिल" और "मॉर्निंग वॉक" पर
महज दस कदम चलने के नाम से ही
बुरी तरह बिफ़र जाती हैं।
क्यों?
क्योंकि वो मजदूर
हैं और हम मजबूर हैं।
राह भटकते मजदूर
और बिलखते मासूम
को देखकर
हमारी आँखें भर जाती हैं।
लेकिन,
वर्तमान हालात की
विषमता
और भयंकर दुर्व्यवस्था
हमें ना चाहकर भी आँखें मूंदने को
विवश कर जाती हैं।
क्यों ?
कभी घटती नहीं
और घर में आराम से बैठे-बिठाये
हमारी रातें कटती नही।
क्यों ?
जैसे चटक-से गये हैं।
अलमारी में रखे हमारे जूते-चप्पल
अपनी जगह पर मानो अटक-से गये हैं।
क्यों ?
माल गाड़ी रौंद कर चली जाती है,
शौक से चुहिया कुतर जाती है।
क्यों?
एक सौ साठ मील का सफ़र
यूं तय कर जाती है,
घर में लगे "ट्रेड मिल" और "मॉर्निंग वॉक" पर
महज दस कदम चलने के नाम से ही
बुरी तरह बिफ़र जाती हैं।
क्यों?
को देखकर
हमारी आँखें भर जाती हैं।
लेकिन,
और भयंकर दुर्व्यवस्था
हमें ना चाहकर भी आँखें मूंदने को
विवश कर जाती हैं।
क्यों ?