पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली
सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत
है। आज आपके सामने प्रस्तुत है
रचनाकार प्रियंका प्रियदर्शिनी की एक कविता जिसका
शीर्षक है “मेरा ग़म”:
कुछ खालीपन जो महसूस
हो रहा है
तुम्हारा दिया ग़म रिस
रहा है
चुपके से जो मेरे रोने की
आदत हो गई है
तुम्हारा मुझे समझने की
गुंजाइश खत्म हो गई है
कहते हो मैं यही
तो हूँ तुम्हारे
पास
फिर कहाँ गए सारे एहसास
यूँ हर बात में
मेरी खबर लेना
फिर क्यों नज़रअंदाज की
नौबत आना
तेरे मेरे रिश्ते
का ये अंजाम
सम्भलने भी नही दिया
रही मैं अंजान
फिर भी इंतजार की
हद मैं
पार करूँगी
तुम्हारे लिए हर मोड़ पर
रूकूँगी
कभी तो तुम मेरे
लिए रूकोगे
मेरी ग़मगीन आँखों को पढ़ोगें
कुछ खालीपन जो महसूस
हो रहा है
तुम्हारा दिया ग़म रिस
रहा है
चुपके से जो मेरे रोने की
आदत हो गई है
तुम्हारा मुझे समझने की
गुंजाइश खत्म हो गई है
पास
फिर कहाँ गए सारे एहसास
फिर क्यों नज़रअंदाज की
नौबत आना
सम्भलने भी नही दिया
रही मैं अंजान
पार करूँगी
तुम्हारे लिए हर मोड़ पर
रूकूँगी
मेरी ग़मगीन आँखों को पढ़ोगें