पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सुरेन सागर की एक कविता जिसका
शीर्षक है “देश गीत गा रहा हूँ ......”:
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ ......
राम के इस देश मे,
गांधी के परिवेश
में,
जो मिला उसे नमन
करके चला जा रहा हूँ।।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
प्रेम से पुकार
कर
क्रोध को नकार कर,
राग अपनी भूल कर
देश राग गा रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
तीखी खोटी भी
सुनी
हुई बहुत सी अनमनी
मगर ध्यान से हटा
धैर्य को सजा रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
धुन मेरी है नेक
सी
प्रीत के सन्देश सी,
जो है सब मीत
मेरे
ऐसी रीत ध्या रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
सबका साथ ले चलो
धीरे धीरे ही सही बढ़े चलो बढ़े चलो,
अगर मगर भूलकर
डगर पे बढ़ता जा रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ ......
करके चला जा रहा हूँ।।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
क्रोध को नकार कर,
देश राग गा रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
हुई बहुत सी अनमनी
मगर ध्यान से हटा
धैर्य को सजा रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
प्रीत के सन्देश सी,
ऐसी रीत ध्या रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।
धीरे धीरे ही सही बढ़े चलो बढ़े चलो,
डगर पे बढ़ता जा रहा हूँ।
देश गीत गा रहा हूँ।
अपनी धुन में जा रहा हूँ।