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कविता: रो रही लाचार बेटियाँ आज (सरिता श्रीवास्तव, बर्नपुर, आसनसोल, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सरिता श्रीवास्तव की एक कविता  जिसका शीर्षक है “रो रही लाचार बेटियाँ आज”:
 
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार,
रो रही आज की बेटियाँ,
चीख रही आज उनकी हर एक जख्म,
नोच खाया फिर दरिंदो ने,
बनाया अपनी हैवानियत का शिकार,
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार!!
 
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार,
बेटी बचाओ वाले देश में मर रही रोज बेटियाँ,
चिरहरण हो रही आज भी द्रोपदी की,
हर रोज नया रावण हर रहा सीता,
सब तरफ बस फैला भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार,
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार!!
 
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार,
गंगा जैसी पवित्र माता यहाँ बसती,
धरती की गोंद की सब ठंडक लेते,
फिर भी छल्ली कर देते जिस्म,
सीने पर अब वहसी भोक रहे हथियार,
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार!!
 
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार,
हर रोज की यही दस्ता हो गयी,
कोई गली मोहल्ले बाकी ना रही,
उमर की भी सिमा की ना लाज रखी,
तड़प उठती आत्मा ना कोई दिखता आसार,
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार!!
 
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार,
दहशत इस कदर छाई,
अपने ही घरों में लगता अब सुरक्षित नही,
हर बार और बार बार हुआ यह खेल खतरनाक,
दिखती अब हर एक अजनबी में भयानक पशु खूंखार,
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार!!
 
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार,
पीड़ा ये दुखदायी बया करे पर कोई ना सुनवाई,
माता पिता की जो थी लाडली,
छप कर रह गयी अब अखबारों की एक कहानी,
देख जिस्म की हालत फिर भी आज़ाद घूम रहे वो पापी दुराचार,
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार!!
 
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार,
हुआ बर्बरता राखी की भी भूल गए मर्यादा,
भेड़ियों ने इस कदर नोंच खाया,
वर्दी धारी ने भी क्या खूब फर्ज निभाया,
पूछती हर एक बेटी सुरक्षा की किससे करे गुहार,
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार!!
 
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार,
रोज तुम्हारी सब वंदना करते,
इस समाज में बेटियाँ भी पूजी जाती,
फिर क्यों तड़प रही आज तुम्हारी संतान,
कितने कष्ट दिये होंगे क्यों तुम हो आज लाचार?
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार!!