पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार जसप्रीत कौर 'प्रीत' की एक कविता जिसका
शीर्षक है “मां”:
क्या हुआ अगर मैं बड़ी हो गई हूं
मेरे अंदर का बच्चा आज भी छोटा है
आज भी जब थक जाता है देखता है चारों तरफ
मां की गोद में सोना चाहता है
सभी जिम्मेदारियां समय से पूरी करती हूं
पर मन आज भी मां से चोटी बनवाना चाहता है
करती हूं काम सभी बड़े हिसाब से
पर मन लापरवाही से पड़ती मां की डांट खाना चाहता है
बनाती हूं नए पकवान रोज ही घर में
अंदर का बच्चा आज भी मां से जिद्द करना चाहता है
क्या हुआ बाल पकने लगे है मेरे
पर मन आज भी मां का दुलार चाहता है
मां के कारण ही तो वह मन का बच्चा जिंदा है
तभी तो उम्र जो भी हो छोटा ही रहना चाहता है
क्या हुआ अगर मैं बड़ी हो गई हूं
मेरे अंदर का बच्चा आज भी छोटा है
आज भी जब थक जाता है देखता है चारों तरफ
मां की गोद में सोना चाहता है
सभी जिम्मेदारियां समय से पूरी करती हूं
पर मन आज भी मां से चोटी बनवाना चाहता है
करती हूं काम सभी बड़े हिसाब से
पर मन लापरवाही से पड़ती मां की डांट खाना चाहता है
बनाती हूं नए पकवान रोज ही घर में
अंदर का बच्चा आज भी मां से जिद्द करना चाहता है
क्या हुआ बाल पकने लगे है मेरे
पर मन आज भी मां का दुलार चाहता है
मां के कारण ही तो वह मन का बच्चा जिंदा है
तभी तो उम्र जो भी हो छोटा ही रहना चाहता है