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कविता: नींद नहीं आती है (बोधी राम साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार बोधी राम साहू की एक कविता  जिसका शीर्षक है “नींद नहीं आती है”:
               
कवि को नींद नहीं आती है समाज की बिगड़ी दशा देखकर।
जब सारा आलम नींद में सोता है कवि सोचता है रात जगकर।
हर दुर्दशा हर आलम ठिठकता झकझोरता है उसे कुरेदकर।
पेट्रोल दाल सब्जी अनाज के भाव में बेतहाशा वृद्धि को देखकर।
कवि की नींद उड़ जाती है आवश्यक वस्तुओं के भाव देखकर।
बरसात में घर की रिसती दीवार बच्चों की पढ़ाई फीस देखकर।
बीवी की झल्लाहट फरमाइश और बच्चों की फड़फड़ा हट देखकर।
कवि को नींद नहीं आती है समाज की बिगड़ी दशा देखकर।
कवि ऐसा जीव जो खुद से ज्यादा करता दुनिया की फिक्रर।
कवि चैन से सोएगा तो जागेगा कौन बिगड़ती दशा का है फ़िकर।
सच है प्यारे कवि धर्म निभाना कठिन है इस बात का हर पल है जिकर।
जब लोग हंसी ख्वाबों में  रात चैन से सोते हैं खुशी मिजाज बन कर।
तब कविराज जागकर रात रात लिखता है हर खुशियां बेचकर।
नींद तो ऐसे आशिकों की भी नहीं उड़ती हर समस्या सोच कर।
समाज की बिगड़ी दशा को कैसे दिशा दें नींद उड़ती है यह सोच कर।
कवि को नींद नहीं आती है समाज की बिगड़ी दशा देखकर।
शब्द मुहावरे कविता से महल खड़ा करता है कवि की पैनी नजर।
कवि की बांनगी सोया वो खोया जागा सो पाया बस यही सोचकर।
तंग हाल में भी खुश हाल है पर बीवी को भा रहा बस साजो सिंगार है।
बीवी की दिन ब - दिन बढ़ती डिमांड ऊपर से बढ़ती जाती तकरार।
बीवी की गुर्राहट रात भर लिखो किस बात की तरक्की बोली मुंह मोड़कर।
महंगाई गरीबी भुखमरी बेरोजगारी पर लेख क्यो लिखते हो नींद बेचकर।
कवि बोला देश समाज राष्ट्र कि मुझे चिंता है मत टोको खबरदार।
कवि को नींद नहीं आती है समाज की बिगड़ी दशा देखकर।