पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी
जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका
स्वागत है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार वंदन कुमार झा की एक कविता जिसका शीर्षक है “सब समझता हूं मैं”:
तुम ये गर्दन को तिरछा करके
अपने बाल कांधों पर लाती हो न
सब समझता हूँ मैं .......
कभी मुझको झूठा
गुस्सा दिखा के
छुप छुप के मुस्कुराती हो न
सब समझता हूँ मैं .......
कंगन कलाई पर
घुमाते हुए जब
आईने के आगे रुक जाती हो न
सब समझता हूँ मैं ....
मुझसे नज़र कम ही
मिलाती हो
मगर जब मिलाती हो न
सब समझता हूँ मैं .....
मेरा नाम लिए
बिना आंखे बंद कर
जब मुझे ही गुनगुनाती हो न
सब समझता हूँ मैं .....
चेहरे पर हाथ रख
मेरे ही बारे में
जब सहेली को बताती हो न
सब समझता हूँ मैं .......
रोज़ अलविदा कहकर
मुझसे तुम
जो चुपके से ख्वाब में आती हो न
सब समझता हूँ मैं .......
तुम ये गर्दन को तिरछा करके
अपने बाल कांधों पर लाती हो न
सब समझता हूँ मैं .......
छुप छुप के मुस्कुराती हो न
सब समझता हूँ मैं .......
आईने के आगे रुक जाती हो न
सब समझता हूँ मैं ....
मगर जब मिलाती हो न
सब समझता हूँ मैं .....
जब मुझे ही गुनगुनाती हो न
सब समझता हूँ मैं .....
जब सहेली को बताती हो न
सब समझता हूँ मैं .......
जो चुपके से ख्वाब में आती हो न
सब समझता हूँ मैं .......