Welcome to the Official Web Portal of Lakshyavedh Group of Firms

कविता: सब समझता हूं मैं (वंदन कुमार झा, नवादा, बिहार)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार वंदन कुमार झा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “सब समझता हूं मैं”: 
तुम  ये  गर्दन  को तिरछा करके
अपने बाल कांधों पर लाती हो न
सब समझता हूँ मैं .......
 
कभी मुझको झूठा गुस्सा दिखा के
छुप छुप के मुस्कुराती हो न
सब समझता हूँ मैं .......
 
कंगन कलाई पर घुमाते हुए जब
आईने के आगे रुक जाती हो न
सब समझता हूँ मैं ....
 
मुझसे नज़र कम ही मिलाती हो
मगर जब मिलाती हो न
सब समझता हूँ मैं .....
 
मेरा नाम लिए बिना आंखे बंद कर
जब मुझे ही गुनगुनाती हो न
सब समझता हूँ मैं .....
 
चेहरे पर हाथ रख मेरे ही बारे में
जब सहेली को बताती हो न
सब समझता हूँ मैं .......
 
रोज़ अलविदा कहकर मुझसे तुम
जो चुपके से ख्वाब में आती हो न
सब समझता हूँ मैं
.......