पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार आदिवासी सुरेश मीणा की एक कविता जिसका शीर्षक है “अब भी में अकेला हूं”:
तेरे साथ बिताए
वो पल याद करता हूं
तुझे मोहब्बत है
या नही में अब भी करता हूं
मेरे सपनों में
तेरे ईश्क़ की छुअन चाहता हूं
इस रिश्ते को
मजबूत डोरसे बांधना चाहता हूं
जब कभी अकेला पन
महसूस करता हूं
अपनी मौज में
सागर किनारे बैठ जाता हूं
तेरी सारी तसवीरें तेरी में बार बार देखता हूं
उनसे कुछबातें
करके अपना मन हलका करता हूं
टकरातीं हुई लहरोको
मदमस्त होकर देखता हूं
गीली रेतपे तेरा
मेरा नाम एकसाथ लिखता हूं
ओर आँखे बंध कर
के स्वयं को जी लेता हूं
जब प्यास लगे तो
सारे आँसू को पी लेता हूं
अब ओर
कीसीसे शिकायत नही करता हूं
दर्पण के सामने
खुद को में अब संभाल लेता हूं
दिलको महसूस नही
होने देता इतना टूटा हुआ हूं
अब भी तेरी तलाश
में हूं अब भी में अकेला हूं।