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कविता: मेरी मां (साक्षी यादव, रायगढ़, ओड़िशा)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार साक्षी यादव की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मेरी मां”:
 
सब कुछ जानने के बाद भी अंजान सी रेहती है।
मेरी तकलीफों को मुझसे ही सुन ने कि उसकी एक जिद्द होती हैं।
हस्ते हुए चहरे पर भी वो मेरी आंखो में गम का सैलाब ढूंढ लेती हैं।
सक्त सी दिखती है, लेकीन दिल की नरम है।
मेरी हर तकलीफों में मेरे साथ होती है।
मेरी हर गलतियों को पापा के गुस्से से  बचाती है।
लेकिन गलती दुबारा ना हो इस  भी ज्ञान देती है।
उस अगर परेशान करती हूं तो खूब डांट लगती है।
लेकिन फिर मन ही मन खूब निराश होती हैं।
अच्छे - बुरे में फर्क समझती है।
तर्क से फर्क मिटाती है।
अधि रात को मेरे अंधेरे कमरे में झांक कर अपने दिल को तसल्ली दिलाती है।
वो एक फरिश्ता है भगवान का,
जो मेरी मा कहलाती है।