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कविता: दाग (डॉ● सुशील कुमार भोला, गंगा नगर, बन तालाब, जम्मू)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉसुशील कुमार भोला की एक कविता  जिसका शीर्षक है “दाग”:

न लगे तेरे दामन पर दाग कोई,

तुझे छोडा तेरा शहर भी छोड़ दिया हमने ..

मेरे नाम से न हो तेरी रुसवाई,

खुद से खुद को बेगाना कर लिया हमने ..

गवाही न दे जाए आईना तेरे होने की,

वह आईना ही तोड़ दिया हमने ..

तेरे बदन की खुशबू हवा ले न जाए कहीं,

हवा के साथ बहना सीख लिया हमने ..

सांस भी कहाँ अपनी - अपनी रहती है,

तुम्हें कैसे अपना समझ लिया हमने ..

एक दिन दुनिया से रुख़सत हो जाऊँगा,

किसलिए तेरी बेवफाई के चर्चे किए जमाने से हमने ..

ख्वाब ड़रते हैं नींद में अब होश नहीं रहता,

कितने सपने सजाये ख्यालों में तुम्हें लेकर हमने ..

चाहूँ लम्बा सफ़र - पैर जवाब दे जाते हैं,

तेरे संग आसमानों का सफ़र खुद पर हंस लिया हमने ..

एक दिन धडकनें विराम ले ही लेंगी,

दिलों का लेन - देन नया व्यापार कर लिया हमने ..

सज धज रोज़ सूर्य दिन भर चमक लेता है,

अंधेरों में एक दिन इसी की तरह छुप जाना है हमने ...