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कविता: आजकल की लड़कियाँ (पार्वती कानू, अलिपुरदूवार, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पार्वती कानू की एक कविता  जिसका शीर्षक है “आजकल की लड़कियाँ”: 

आजकल की लड़कियाँ पढना चाहती हैं,,
कभी थी घूँघट के पीछे,
अब पुरूषों के साथ कदम मिलाना चाहती हैं।
लोग क्या कहेंगे इसको भूल आगे बढना चाहती हैं,
आजकल की लड़कियाँ।।
कहीं शोषित होती हैं, कहीं जला दी जाती हैं, कहीं दबा दी जाती हैं।
फिर भी हर दद॔ को सहन कर आगे बढना चाहती हैं,
कीचड़ में भी कमल की फूल की खिलना चाहती हैं।
आजकल की लड़कियाँ।।
कभी कोमल हाथो से अपना रूप संवारती थी,
अब इन्ही हाथो से कुश्ती खेलना जानती हैं।
कभी पैरो में पायल पहनती थी,
अब फुटबाँल के मैदानो में खड़ी हो रही हैं।
आजकल की लड़कियाँ।।
कभी साँवली होने पर घबराती थी,
अब रूप - रंग को पीछे छोड़ आगे बढना चाहती हैं।
फूटबाँल, कुश्ती, टेनिस, हॉकी,
क्रिकेट, एथलेटिक्स हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं।
आजकल की लड़कियाँ।।
अपनी काबिलियत से अपना वजूद बनाना चाहती हैं,
हर कठिनाइयो से लड़कर समाज में अपना अस्तित्व बनाना चाहती हैं।
आजकल की लड़कियाँ।।