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कविता: सम्बन्धों में प्रेम नहीं है (प्रतिभा सिंह, कोलकाता, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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सम्बन्धों में प्रेम नहीं है, हर रिश्ते में दूरी है।
मनुज दूर है मानवता से, ये कैसी मजबूरी है ?
 
        अत्याचार बढ़ा धरती पर,
        सब मानव बेहाल हुए।
        भाई - भाई ही कलयुग में,
        इक - दूजे के काल हुए।
 
माया के अति मोहजाल से, सारी खुशी अधूरी है।
मनुज दूर है मानवता से , ये कैसी मजबूरी है ?
 
         मानव खुद तक सिमट गया है,
         परहित का अब भाव नहीं।
         हर घर में दीवार खड़ी है,
         आपस में सद्भाव नहीं।
 
सबमें प्रेमभाव का जगना, अब तो बहुत जरूरी है।
मनुज दूर है मानवता से, ये कैसी मजबूरी है?
 
          दो पल पास बैठ कर कोई,
          नहीं किसी से बतियाता।
          सुत अब वृद्ध पिता - माता का,
          हाल पूछने कब आता ?
 
मातु - पिता के आशीषों  बिन,कहां जिंदगी पूरी है ?
मनुज दूर है मानवता से, ये कैसी मजबूरी है ?
 
          स्वार्थ हेतु रिश्ते अब जुड़ते,
          ठगा ठगा - सा हर जन है।
          देख जगत की अजब चाल यह,
          सचमुच दुखित आज मन है।
 
मुंह से रामनाम जपते सब, मगर बगल में छूरी है।
मनुज दूर है मानवता से, ये कैसी मजबूरी है
?