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कविता: पूर्वजों के सम्मान में (डॉ● भूपेन्द्र कुमार, धामपुर, बिजनौर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ भूपेन्द्र कुमार की एक कविता  जिसका शीर्षक है “पूर्वजों के सम्मान में”:

पूर्वजों से जो भी पाया, उस पर करो विचार सखा

परम्परा के अनुगमनों में, हो जीवन हित सार सखा

 

वर्तमान में जीयो परन्तु भूतकाल से मुँह न मोड़ो

नुतनता की अभिलाषा में रीत पुरानी को न तोड़ो

मनभावन खंडन मंडन कर विश्वासों की वलि न देना

कोई माने या ना माने ये सबकी मर्ज़ी पर छोड़ो

सबके सम्मुख रखो अपने, मन के यही उद्गार सखा .....

 

अपने और पराए बनते ध्यान रहे बस सुनन कहन में

सुख समृद्धि और शांति सदा दीखतीं रहन सहन में

संयम नियम टूटते जुड़ते, वैसे तो इस जीवन पथ में

कष्टों का जोखिम भी होता परिपाटी के निर्वहन में

हो जाती है जीत कहीं पर, और  कहीं  पर हार सखा .....

 

रीति रिवाजों प्रथाओं से वंश कुलों को जाना जाता

निर्बल निर्धन उच्च कुलीन, वो कैसे होंगे माना जाता

निष्ठुर काल परिस्थितियों का इतिहास साक्षी देता है

रामायण महाभारत जैसे युग का गाया गाना जाता

याद सदैव किया करता है कर्मों को संसार सखा .......

 

पूर्वजों से पितामह पिता, नियम निर्धारण का श्रेय लेती

नैतिक मूल्यों मान मर्यादा आदि की ही होती खेती

बीज रूप में जीवन मिलता पुष्प बने फिर फलता जीवन

ज्ञान पुरातन साहस धैर्य यही पीढ़ियाँ आयी देती

क्या खाना क्या पीना है,करना क्या व्यवहार सखा .......

 

जो पाया है वही छोड़ना, श्रेष्ठ जोड़कर छोड़ अगाड़ी

वंश बेल निज कोश रूप में, छोड़ सम्पदा गए पिछाड़ी

यही नमन है पितृवंश को, त्याग करो न करो और कुछ

छोटा बड़ा वृद्ध हो कोई, चाहे अनाड़ी हो या खिलाड़ी

हर सम्बन्ध निभाना चाहो, करके सौ मनुहार सखा  .......