पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार आदिवासी सुरेश मीणा की एक कविता जिसका
शीर्षक है “सोचने वाली बात .......”:
वासना है
तुम्हारी नजर ही में तो मैं क्या क्या ढकूं,
तू ही बता क्या
करूं के चैन की जिंदगी जी सकूं।।
साडी पहनती हूं
तो तुझे मेरी कमर दिखती है
चलती हूं तो मेरी लचक पर अंगुली उठती है।।
दुप्पटे को क्या शरीर पर नाप के लगाउ मै।
कैसे अपने शरीर की संरचना को तुमसे छुपाउ मैं
पीठ दिख जाए तो वो भी काम निशानी है।
क्या क्या छुपाउ तुमसे तुम्हारी तो मेरे हर अंग को देख के बहकती जवानी है।
घाघरा चोली पहनू तो स्तनो पर तुम्हारी नजर टिकती है पीछे से मेरे नितंम्बो पर तेरी आंखे सटती है
केश खोल के रखू तो वो भी बेहयाई है।
क्या करे तू भी तेरी निगाहों मे समायी काम परछाई है।।
हाथो को कगंन से
ढक लूं चेहरे पर घुंघट का परदा रखलू किसी की जागिर हूं दिखाने के लिए अपनी मांग
भरलूं पर तुम्हे क्या परवाह मैं किसकी
बेटी किसकी पत्नी किसकी बहन हूं तुम्हारे लिए तो बस तुम्हारी वासना को
मिलने वाला चयन हूं
सिर से पांव के नख तक को छुपालूंगी तो भी कुछ नहीं बदलेगा
तेरी वासना का भूजंग तो नया बहाना बनकर के हमें डस लेगा
कड़वा है पर सच
है
हर नारी को समर्पित हर औरत का वक्त कमजोर हो सकता है
पर औरत नहीं
चलती हूं तो मेरी लचक पर अंगुली उठती है।।
दुप्पटे को क्या शरीर पर नाप के लगाउ मै।
कैसे अपने शरीर की संरचना को तुमसे छुपाउ मैं
पीठ दिख जाए तो वो भी काम निशानी है।
क्या क्या छुपाउ तुमसे तुम्हारी तो मेरे हर अंग को देख के बहकती जवानी है।
घाघरा चोली पहनू तो स्तनो पर तुम्हारी नजर टिकती है पीछे से मेरे नितंम्बो पर तेरी आंखे सटती है
केश खोल के रखू तो वो भी बेहयाई है।
क्या करे तू भी तेरी निगाहों मे समायी काम परछाई है।।
सिर से पांव के नख तक को छुपालूंगी तो भी कुछ नहीं बदलेगा
तेरी वासना का भूजंग तो नया बहाना बनकर के हमें डस लेगा
हर नारी को समर्पित हर औरत का वक्त कमजोर हो सकता है
पर औरत नहीं