पश्चिम बंगाल
के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सपना की एक कविता जिसका
शीर्षक है “ए चांद”:
ए चांद तू आ
जल्दी से जरा,
दीदार करूं साजन
के जरा।
लेकर थाली पूजा की मैं ,
इंतजार में खड़ी हूं कबसे मैं।
आ जाओ ना नखरे दिखाओ,
मुझसे तुम यूं ना
शरमाओ।
उतारूं आरती भोग लगाऊं,
तुमको प्रेम से शीश झुकाऊं।
सातों जनम रहे
साथ पिया का,
सदा हाथों में
रहे हाथ पिया का।
साजन मुझसे कभी ना रूठें,
ये प्रेम का बंधन कभी ना टूटे।
खुद को मैं
दुल्हन सा सजाई,
हाथों में सुंदर
मेंहदी रचाई।
आज पहनी मैंने चूड़ियां लाल,
बिंदिया भी लगाई मैंने लाल।
गले में
मंगलसूत्र सजाया,
सिंदूर मांग में
लाल लगाया।
पैर की पायल छम छम बोले,
साजन से कुछ यूं ये बोले।
श्रृंगार मेरे सब
तुमसे पिया हैं,
जीवन के रस तुमसे
पिया हैं।
तुम बिन नीरस जीवन मेरा,
मैं राधा तू मोहन है मेरा।
लग जाए तुझे मेरी
उम्र पिया,
तेरे लिए ही व्रत
निर्जला किया।
करवाचौथ की पावन बेला पर,
हम वचन लें हाथ में हाथ लेकर।
आंधी आए या तूफान
आए,
कितना बड़ा ही
संकट आए।
छोड़ें ना संग एक दूजे का,
बने सहारा हम एक दूजे का।
सुहागिनों का
शुभदिन आया,
चांद ने आकर अमृत
बरसाया।
सिंदूर सभी का रहे सलामत,
सपना की बस यही है मन्नत।