पश्चिम बंगाल
के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार आभा मिश्रा की एक कविता जिसका
शीर्षक है “सोलह श्रृंगार से सजी दुल्हन”:
सोलह ऋंगार से
सजी दुल्हन,
पिया से रिश्ता
जोड़ चली।
संस्कारों की ओढ़
चुनरिया,
बाबुल का घर छोड़
चली।
एक आंगन में खेले
थे हम,
सुख - दुख बांटे थे अपने।
भाई - बहन, सखीयों के संग,
सुंदर देखे
थे सपने।
ले स्मृतियों का
अनमोल खजाना,
सबसे मैं मुख
मोड़ चली।
संस्कारों की
ओढ़चुनरिया,
बाबुल का घर छोड़
चली।
मां की ममता का
आंचल छुटा,
घर से जैसे रिश्ता टूटा ।
उदासी ओढ़े घर का
कोना,
लगता हैं कुछ
रुठा रुठा।
घर आंगन गली कूचे
से,
सारे बंधन तोड़
चली।
संस्कारों की ओढ़
चुनरिया,
बाबुल का घर छोड़
चली ।
मांग का टीका हाथ
की मेहंदी,
चूड़ी करती खन खन
खन।
पांव महावर बिछुआ
पायल,
बज रही है छन छन
छन।
सेवा प्रीत समर्पण
भाव से,
ससुराल से नाता
जोड़ चली।
संस्कारों की ओढ़
चुनरिया,
बाबुल का घर छोड़
चली।