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कविता: सोलह श्रृंगार से सजी दुल्हन (आभा मिश्रा, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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सोलह ऋंगार से सजी दुल्हन,
पिया से रिश्ता जोड़ चली।
 
संस्कारों की ओढ़ चुनरिया,
बाबुल का घर छोड़ चली।
 
एक आंगन में खेले थे हम,
सुख - दुख बांटे थे अपने।
 
भाई - बहन, सखीयों के संग,
सुंदर  देखे  थे  सपने।
 
ले स्मृतियों का अनमोल खजाना,
सबसे मैं मुख मोड़ चली।
 
संस्कारों की ओढ़चुनरिया,
बाबुल का घर छोड़ चली।
 
मां की ममता का आंचल छुटा,
घर  से जैसे रिश्ता  टूटा ।
 
उदासी ओढ़े घर का कोना,
लगता हैं कुछ रुठा रुठा।
 
घर आंगन गली कूचे से,
सारे बंधन तोड़ चली।
 
संस्कारों की ओढ़ चुनरिया,
बाबुल का घर छोड़ चली ।
 
मांग का टीका हाथ की मेहंदी,
चूड़ी करती खन खन खन।
 
पांव महावर बिछुआ पायल,
बज रही है छन छन छन।
 
सेवा प्रीत समर्पण भाव से,
ससुराल से नाता जोड़ चली।
 
संस्कारों की ओढ़ चुनरिया,
बाबुल का घर छोड़ चली।