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कविता: परिवर्तन (महेन्द्र सिंह 'राज', मैढीं, चन्दौली, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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परिवर्तन की  ज्वाला  मन अशांत
हर जन  जन  मन  हो गए क्लांत
विष बेल बढ  रही नित दीर्घाकार
जनु सम्मुख  खड़ा  काल साकार।
 
मानव मन कुटिलता चरम पथ पर
नित  पांव  पसार  रही  कुपथ  पर
मानवता  नाच  रही होकर  मजबूर
सुघड संस्कृति का पथ है अति दूर।।
 
ये तो कलियुग का अभी प्रथम चरण
वसुन्धरा का व्याकुल  प्रति रज कण
ज्ञान भक्ति भी अब है विलुप्त धरा से
मद लोभ परचम होता है हरा भरा से।
 
मानव, स्वच्छंद कर रहा प्रकृति शोषण
दिन - दिन बढ रहा  पर्यावरण  प्रदूषण
वृक्ष कट रहे अबाध, नदियाँ नीरदूषित
होगी  विनाश लीला, नभ पूर्ण प्रदूषित।
 
धरती कराहेगी, अरु  गगन भी रोयेगा
मानव विनाशबीज कब तक तूं बोएगा
मैं की होड इक दिन सबको लील लेगी
वक्त है संभल, नहीं तो सबको दण्डदेगी।