पश्चिम बंगाल
के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार महेन्द्र सिंह 'राज' की एक कविता जिसका
शीर्षक है “परिवर्तन”:
परिवर्तन की ज्वाला मन अशांत
हर जन जन मन हो गए क्लांत
विष बेल बढ रही नित दीर्घाकार
जनु सम्मुख खड़ा काल साकार।
नित पांव पसार रही कुपथ पर
मानवता नाच रही होकर मजबूर
सुघड संस्कृति का पथ है अति दूर।।
वसुन्धरा का व्याकुल प्रति रज कण
ज्ञान भक्ति भी अब है विलुप्त धरा से
मद लोभ परचम होता है हरा भरा से।
दिन - दिन बढ रहा पर्यावरण प्रदूषण
वृक्ष कट रहे अबाध, नदियाँ नीरदूषित
होगी विनाश लीला, नभ पूर्ण प्रदूषित।
मानव विनाशबीज कब तक तूं बोएगा
मैं की होड इक दिन सबको लील लेगी
वक्त है संभल, नहीं तो सबको दण्डदेगी।