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कविता: गृह लक्ष्मी हम स्त्रियां.... (ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार ऋतु गुप्ता की एक कविता  जिसका शीर्षक है “गृह लक्ष्मी हम स्त्रियां....”: 

कहते है लोग कि घर की लक्ष्मी होती है हम स्त्रियां।
कुमकुम लगे पैरों से गृह प्रवेश करती है हम स्त्रियां।
 
डोली में आती है तो
अर्थी मे ही विदा होती है हम स्त्रियां।
 
बेगानो में आकर
अपनों को ढूंढती है हम स्त्रियां।
 
रंगोली बना ,वन्दनवार सजा
मकान को घर बनाती हम स्त्रियां।
 
दीपावली, करवाचौथ,अहोई या वट सावित्री
राखी या भाई दूज ,बड़े चाव से मनाती हम  स्त्रियां।
 
सारे त्यौहार हमारे, फिर भी हमारे लिए ना कोई
ना कोई गिला ,ना कोई शिकवा रखती है हम स्त्रियां।
 
घर आंगन सवांरा तो जैसे
खुद ही संवर जाती है हम स्त्रियां।
 
कर फूलों से भीश्रृंगार
गहनों का सुख पाती है हम स्त्रियां।
 
इसलिए ही तो गृह लक्ष्मी कहलाती है हम स्त्रियां।