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कविता: उफ (सुनीता कुमारी, पूर्णियाँ, बिहार)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “सुनीता कुमारी की एक कविता  जिसका शीर्षक है उफ”:

 
ये  तंग होती गलियां ।
अतिक्रमण का दंश ,
झेलती गलियां ।
हवाएं भी गुजरने से कतराती हैं।
क्योंकि,
कदम कदम पर अड़चने  आती है।
इन हवाओं को भी ,
रास्ता नहीं मिलता ,
आगे बढ़ जाने का ।
दीवार ही दीवार है केवल,
न खिड़की हैं न दरवाजा,
आगे बढ़ने का।
ये हवाएँ ,
गली में घुस तो गई एकबार,
फिर रह जाती हैं ,
एक ही जगह पर पसीजकर।
ऊब  जाती हैं,
एक ही जगह पड़े पड़े ।
बदबू आती हैं,
एक ही जगह खड़े खड़े
उफ
ये तंग होती गलियां
अतिक्रमण का दंश झेलती गलियां।
शकरी ,
अतिशकरी होती गलियां।
लोग चले जा रहे हैं,
भीड़ का हिस्सा बनकर,
हररोज नई कहानी गढ़ते,
इस भीड़ का किस्सा बनकर।
चुपचाप मौन
कुछ कहते नही ,
गली की इस स्थिति पर।
कुछ करते नही ,
गली की इस परिस्थित पर।
उफ
ये तंग होती गलियां
बेबस घुटती ,
मजबूर जिंदगियां।